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Posted: 06 Dec 2010 01:47 AM PST दिन तो बदलते है जीते है मरते है अपनी इस दुनिया में पल पल फिसलते है क्षण-भंगुर ये काया भटकाती है माया मन के इस भटकन से बारम्बार छलते है चलायमान सांसो का गतिमान इस धड़कन का नश्वर इस काया से मोहभंग होना है सावन फिर आयेगा बदरा फिर छाएगा ऋतुओं को आना है आकर छा जायेगा मन के इस Continue Reading » |
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