Monday, January 30, 2012

vicharmimansa.com

vicharmimansa.com


आरक्षण के इस खेल में कितना और गिरेंगे

Posted: 30 Jan 2012 08:07 AM PST


anti reservation protest 3 आरक्षण के इस खेल में कितना और गिरेंगे पांचों राज्यों के चुनाव की मण्डी सज चुकी है सभी अपने माल को बढ़िया व दूसरे के माल को घटिया बता बोली लगा। खरीद-फरोख्त में मशगूल हो गए है। चुनाव की मण्डी का दृश्य किसी पशु मेले की याद को ताजा कर देते है जिसमें गधे-घोड़े, बकरे, गाय, भैंस जो सीधे व मरखोर देखने को मिलते है, का बाजार सजा रहता है। मण्डी में ऊँची बोली और आकर्षण का केन्द्र भी मरखोर जानवर ही होते है। कमोवेश लोकतंत्र के पावन उत्सव में भी कुछ ऐसी ही स्थिति देखने को मिल रही है जिसमें ब्रांडेड पार्टियां भी नीतिगत्, विधिपूर्ण बातें कम अनगिनत, संविधान विरूद्ध बातों को जनता में झूठे वायदे कर बरगलाने के खेल में कोई भी राजनीतिक पार्टी अपने को उन्नीस नहीं रखना चाहती। संविधान विरूद्ध बातों जैसे जातिगत आधार पर आरक्षण की बात जिम्मेदार पार्टियों या प्रतिनिधियों द्वारा जनता से करना, कहना कि यदि हम जीते तो 9 प्रतिशत आरक्षण देंगे, यदि हम जीते तो 18 प्रतिशत आरक्षण देंगे आदि-आदि। ऐसा कह वह कही न कही संविधन को ही क्षति पहुंचाने की बात करते है। आश्चर्य तब होता है जब कांग्रेस ऐसी बात करती है। इस संबंध में पंडित जवाहर लाल नेहरू के विचार निःसंदेह उच्च थे। ''26 मई 1949 को संविधान सभा में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि आप अल्पसंख्यकों को ढाल देना चाहते हैं तो वास्तव में आप उन्हें अलग-थलग करते है, हो सकता है कि आप उनकी रक्षा कर रहे हो पर किस कीमत पर ? ऐसा आप उन्हें मुख्य धारा से काटने की कीमत पर करेंगे'' इसी के तीन वर्ष बाद 21 जून 1961 को पंडित जवाहरलाल नेहरू ने मजहब के आधार पर आरक्षण देने से रोकने के लिए हर राज्य सरकारों को पत्र भी लिखा था। ''मैं किसी भी तरह के आरक्षण को नापसंद करता हूं, यदि हम मजहब या जाति आधारित आरक्षण की व्यवस्था करते है तो हम सक्षम और प्रतिभावान लोगों से वंचित हो दूसरे या तीसरे दर्जे के रहे जायेंगे। जिस क्षण हम दूसरे दर्जे को प्रोत्साहन देंगे हम चूक जायेंगे। यह न केवल मूर्खतापूर्ण है बल्कि विपदा को भी आमंत्रण देना है।'' मुसलमानों में निचली जातियों में व्याप्त कुरीतियों एंव अशिक्षा को दूर करने के लिए सरकार चरणबद्ध कार्यक्रम चलाना चाहिए। हकीकत में गरीब या पिछड़ा किसी भी जाति का हो सकता है फिर चाहे वह ब्राहृाण, क्षत्रिय, वैश्य ही क्यों न हो। सभी गरीबों के लिए सरकार को एक समुचित दीर्घकालीन कार्यक्रम बनाना ही होगा।''

क्या हम इतने गए गुजरे हो गए है कि देशहित की सोच न रख केवल हर नई बात, हर नए मुद्दे, हर नई योजना में केवल जाति, धर्म, के आधार पर एक तोते की तरह केवल और केवल आरक्षण की ही बात बड़ी बेशर्मी से करते है। हैरत तो तब और होती है जब कांग्रेस इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा ले पंडित जवाहरलाल नेहरू की नीति, सोच एवं विचारों को तिलांजली दे संविधान विरूद्ध आरक्षण की पैरवी करती है। पूर्व न्यायाधीश बी. एन. खरे न्यायपालिका में आरक्षण की उठी मांग का पूर्व में ही विरोध कर चुके है, कह चुके है इससे मेरिट प्रभावित होगी।

मण्डल आयोग की भी बुद्धि को देखिए 1931 की जनगणना को पिछड़े वर्गों के आरक्षण जिसमें ओ.बी.सी. आबादी 52 प्रतिशत को माना जबकि 40 वर्षों में कितनी इनकी संख्या बढ़ी का कोई अता-पता नहीं बस आरक्षण लागू हो गया। इससे सिद्ध होता है कि हमारे नेता आरक्षण के लिए कितने उतावले है? इस देश का बेड़ागर्क करने में, डुबाने में नेताओं की अहम भूमिका हैं। शायद यह लोकतंत्र का भविष्य में सबसे काला अध्याय साबित हो?

आज आरक्षण के ही कारण हमारे देश की प्रतिभाओं का पलायन विदेशों में हो रहा है इस चिंता को पंडित जवाहरलाल नेहरू 40 वर्ष पहले ही व्यक्त कर चुके है। आज राजनेताओं को हमारे कोटा वाले डॉक्टरों पर शायद भरोसा नहीं है। तभी किसी अच्छे डॉक्टर या संभवतः देश के बाहर ही अपना इलाज कराना पसंद करते है। हकीकत तो यह है आज कोटे वालों को ही कोटे के डॉक्टरों पर उतना यकीन नही है जिनता आवश्यक है। हकीकत में देखा जाए तो नेता ही आज जनता-जनता में जातियों एवं धर्म का जहर घोल, अधिक से अधिक आरक्षण दिलाने का वादा कर देश को विखण्डित करने की दूरगामी रणनीति पर कार्य करते ही नजर आ रहे है।

राष्ट्रीय नमूना 1999-2000 के अनुसार पिछडा वर्ग का आकड़ा 36 प्रतिशत है। मुस्लिम को हटाकर यह आंकड़ा 32 प्रतिशत है अर्थात् 4 प्रतिशत मुस्लिम है। शायद इसीलिए शासन में मुस्लिम समुदाय के पिछड़ों को 4.5 प्रतिशत आरक्षण ओ.बी.सी. में से देने की बात कह रही है। हकीकत में सच्चर ने वास्तविक पिछड़े और जरूरतमंद लोगों की पहचान के लिए कहा कि योग्यता के आधार पर 60 अंक, घरेलू आय पर 13 अंक जिला या कस्बा जहां व्यक्ति ने अध्ययन किया। 13 अंक, पारिवारिक आय और जाति के आधार पर 14 अंक इस प्रकार कुल 100 अंक होते है। वही मलाईदार परत को पहचानने के लिये सिफारिश किये गये मानदंड जिसमें साल में 250000 से ऊपर आय वाले परिवार को मलाईदार परत में शामिल किया जाना चाहिए लेकिन हम इतने निकम्मे हो गए, इतने मुफ्तखोर बनते जा रहे है कि साल भर की आय की सीमा को ही बढ़ा 9 से 12 लाख तक करने की कोशिश में है। आरक्षण में इन्हें कोटे से बाहर रखा गया जिनमें डॉक्टर, इंजीनियर, कलेक्टर, अभिनेता, चार्टड अकाउटेंट, सलाहकारों, मीडिया, पेशेवरो लेखकों, नौकरशाहो, कर्नल एवं समकक्ष रेंक या अन्य ऊंचे पदों पर, उच्च न्यायालयो, उच्चतम न्यायालयों के न्यायधीशों, सभी केन्द्र एवं राज्यों के सरकारी ए और बी वर्गों के अधिकारियों के बच्चों को भी इससे बाहर रखा गया है। अदालत ने तो सांसदों एवं विधायकों के बच्चों को भी कोटे से बाहर रखने का अनुरोध किया।

अमेरिका, दक्षिणी अफ्रीका, मलेशिया, ब्राजील सहित अनेक देशों में सकारात्मक योजनाएं काम कर रही है। हार्वर्ड विश्वविद्यालय ने हाल ही में हुए शोध के अनुसार सकारात्मक कार्यवाही योजनाएं सुविधाहीन लोगों के लिए लाभप्रद हुई है।

वही भारत में इसके ठीक उलट स्वतंत्रता के पश्चात् हमारे नेताओं ने संकीर्ण राजनीति का निकृष्ट उदाहरण पेश करते हुए आरक्षण को और बढ़ावा ही दिया है।

भारत के केन्द्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद जो जिम्मेदार ओहदा संभाले हुए है ने उत्तर प्रदेश ने फर्रूखावाद से लड़ रही अपनी पत्नी के चुनाव क्षेत्र में मुस्लिम आरक्षण की दिशा में एक कदम बढ़ाते हुए विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस के सत्ता में आने पर मुसलमानों को पिछड़े वर्ग के कोटे में से 9 प्रतिशत आरक्षण दिया जायेगा, कह निःसंदेह पूरी कांग्रेस को कटघरे में खड़ा करने के साथ-साथ मंत्री पद के दौरान् ली गई शपथ का घोर उल्लंघन कर चुनाव आचार संहिता का भी मजाक उड़ाया है, यह अक्षम्य है। हालांकि चुनाव आयोग ने उन्हें इस कृत्य के लिए एक कारण बताओ नोटिस भी तलब किया है जिसे मिल उनके अंदर उनका अहम और जाग उठा कह रहे है नोटिस ही तो हे कोई फाँसी की सजा तो नहीं?

पूर्व मुख्यमंत्री एवं सांसद मुलायम सिंह मुसलमानों को 18 प्रतिशत आरक्षण देने की बात कह रहे है। मेरा कहना है कि 18 प्रतिशत ही क्यों और क्यों नहीं? ऐसा लगता है कि हमारे माननीय, संविधान को अपने घर का कानून समझते हैं? हमें यह नहीं भूलना चाहिए राष्ट्र सर्वोपरि है, संविधान सर्वोपरि है इसके विरूद्ध कुछ भी कहने वाला व्यक्ति संविधान की नजर में केवल एक बदनुमा दाग ही हो सकता है और इससे ज्यादा कुछ नहीं।

डॉ.शशि तिवारी

(लेखिका ''सूचना मंत्र'' पत्रिका की संपादक हैं)
मो. 09425677352

No comments:

Post a Comment