Thursday, January 20, 2011

vicharmimansa.com

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न्यू मीडिया और खोपड़ी में बवंडर ( ब्रेन- स्टोर्मिंग सेशन का बचा-खुचा)

Posted: 20 Jan 2011 11:10 AM PST

2011 के स्वागत में बज रहे नगाड़ों से निकल रहे बेगाने स्वर ने बाजार की रफ्तार से बिछुड़े और पुरानी लीक से चिपके वैदिक काल के मूल्यों पर अटके पत्रकारों के कबीले के सन्नाटे को तोड़ दिया। माजरा समझने की कोशिश में उन्होंने जब नैतिकता के कल्पवृक्ष पर चढ़ कर झांकना शुरू किया तो बौखला गये। बेसुरे स्वर में ढोल

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श्री अशफाक उल्ला खां – मैं मुसलमान तुम काफिर ?

Posted: 20 Jan 2011 08:53 AM PST

अपनी कुर्बानियों से वतन की मिट्टी – पानी का कर्ज़ अदा करने वाले सिरफिरे मतवालों में श्री बिस्मिल के बाद अशफ़ाक़ उल्ला खाँ का ही नाम आता है । प्रस्तुत आत्मकथ्य में विशेष परिचय के उपखँड नाम से दिये परिशिष्ठ मे श्री बिस्मिल की चर्चा के बाद अशफ़ाक़ उल्ला खाँ साहब का परिचय जुड़ा दिखता है । अपने जीवनकाल में

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चौखट पर चीख, चौराहे पर चीरहरण

Posted: 20 Jan 2011 04:50 AM PST

सदियों से महिलाओं के साथ जैसा दमन और अत्याचार हुआ है वह अकल्पनीय है.सीता और पारवती की आर में पुरषों की साज़िश अब खुलकर सामने आने लगी है.एस देश में स्त्रियों की दशा बद से बदतर होती जा रही है. यह हमारे व्यवहार में आ गया है की हमने स्त्री दमन को सामाजिक स्वरुप दे दिया है. पुरूषों की भोगवादी

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स्त्री का अस्तित्व और सवाल

Posted: 20 Jan 2011 03:12 AM PST

एक सवाल अपने अस्तित्व पर, मेरे होने से या न होने के दव्न्द पर, कितनी बार मन होता है, उस सतह को छु कर आने का, जहाँ जन्म हुआ, परिभाषित हुई,मै, अपने ही बनाये दायरों में कैद! खुद ही हूँ मै सीता और बना ली है, लक्ष्मण रेखा, क्यूंकि जाना नहीं है मुझे बनवास, क्यूंकि मै नहीं देना चाहती अग्निपरीक्षा…..

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पुरूष भी होते हंै पत्नियों द्वारा प्रताड़ित

Posted: 20 Jan 2011 02:18 AM PST

पति और सास ने बेचारी पूनम का रोज रोज के लडाई झगडे मारपीट से जीना दुश्वार कर रखा है। ये शब्द हमें हर रोज रोज कहीं न कहीं सुनने को जरूर मिलते हंै पर कहीं यह सुनने को नहीं मिलता कि पूनम ने अपने पति और सास का जीना दुश्वार कर रखा है, क्यों ? क्या बहू द्वारा पति और

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